Sunday, March 6, 2016

ज़रूरी है युवाशक्ति में धैर्य का निवेश

 
             

भारत एक युवा देश है और इस युवा देश में युवाओँ से जुड़ी अनेक समस्याएँ है। युवा वर्ग के पास ऊर्जा है, समय है और बेहतर भविष्य के लिए अनेक  विकल्प भी । परन्तु अनेक स्थानों पर यह वर्ग भ्रमित होता है,छला जाता है।अपनी युवा अवस्था की दुर्बलताओं, तनाव ,दबाव और संघर्ष के साथ-साथ अनिश्चित भविष्य और रोजगार को लेकर भी यह वर्ग सदैव आशंका से ग्रस्त रहता है। भारत में युवाओँ की संख्या अन्य देशों से बहुत अधिक है।  भारत की लगभग  65  प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है। ऐसे में यह बात दीगर है कि भारत के पास बेहतरीन मानव संसाधन मौजूद है।  परन्तु इस समय अगर सबसे बड़ी चुनौति का काम है तो वह है इस युवा वर्ग को एक सही दिशा देना। आज के दौर में विचारधाराओँ का  अनंत जाल फैला हुआ है। इतिहास और भ्रमित सूचनाएँ उसे चौंकाती है, अंतर्जाल और एप्स की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है, जो दिखाया जाता है या जो बताया जाता है ,सच उससे कोसों दूर होता है।  ऐसे में य़ह ज़रूरी हो जाता है कि इस भटकाव को एक सही दिशा मिले। आज देश का सर्वोच्च पद  मेक इन इंडिया की विचारधारा को हकीकत में तब्दील करने का ख्वाब  देख रहा है। वस्तुतः वास्तविक मेक इन इंडिया जैसी अवधारणाएँ तभी फलीभूत हो पाएँगी जब देश के युवाओं में सकारात्मक वैचारिक निवेश किया जाएगा। देश के युवा की भी इस विषय में अहम् भूमिका होगी । उसे चिंतन और मनन करना होगा कि कौनसी बाते स्वयं उसके और देश हित में है और कौनसे नहीं। अगर यूँही अधैर्य औऱ महज उबाल हर और दिखाई दिया तो भारत जल्द ही हिंसा और अलगाव के किसी धधकते ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा होगा। भारत वैचारिक लोकतंत्र को तवज्जो  देता है, यहाँ पर खुलकर अंबेडकरवाद, नारीवाद,आदिवासी  औऱ दलित विमर्श जैसे संवेदनशील मुद्दो पर खुलकर बहस होती  है और उनसे संबंधित समस्याओं पर विचार करने की पहल भी परन्तु आक्रामकता औऱ  एकांगी अतिवादिता भारतीय एकता औऱ अखण्डता को बहुत बड़ी ठेस पहुँचा सकती है। देश के प्रति उठता हर एक शब्द और कृत्य जवाबदेही औऱ जिम्मेदारी की माँग करता है। ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि हम  स्वजाति या वर्ग को रक्षित करने के प्रयत्न में इतने उपद्रवी हो जाए कि हर मन असुरक्षित, बेबस और अरक्षित महसूस करने लगे। कुछ नियम राष्ट्रहित में बनने चाहिए जिनसे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और सम्पदा को स्वच्छंदता, उनमुक्तता  और उपद्रव की आड़ में क्षति ना पहुँचायी जा सके। सरकारों और राजनितिक दलों से भी यहाँ अपेक्षा उठनी स्वाभाविक है कि वे संवेदनशील मुद्दों पर औऱ युवाओं पर बात करते समय तार्किक बनें, उदार बने। क्योंकि देश प्रेम औऱ द्रोह जैसी अवधारणाएँ इतनी सरल नहीं है । अगर देश प्रेम का विलोम कहीं घटता है तो यह न केवल घोर निंदनीय है वरन् उस पर रोक लगाने और घटना की तह तक पहुँचना भी उतना ही ज़रूरी है।

http://dailynewsnetwork.epapr.in/c/8969983


चित्र गुगल से साभार

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