जन्म- 11 मई,1912
मृत्यु-18 जनवरी,1955
"वह शब्दों के पीछे ऐसे भागता है है जैसे कोई जाली शिकारी तितलियों के पीछे। वे उसके हाथ नहीं आती। यही कारण है कि उसके लिखने में सुन्दर शब्दों की कमी है। वह लट्ठमार है, जितने लट्ठ उसकी गर्दन पर पड़े, उसने बड़ी खुशी से सहन किए हैं। "
ये मंटों के आत्मोद्गार है जो उन्होंने ' सहादत हसन' में लिखे हैं। मंटों उर्दू के सबसे महत्वपूर्ण, चर्चित एवं विवादास्पद लेखक हैं। वे जब लिखते हैं तो कलम को मानों तलवार सी धार लग जाती है। लिखते समय वे वाक् चातुर्य व शब्दों की सजावट पर निगरानी नहीं रखते। वे जो लिखते हैं सत्य को अपने पास बैठाकर और अनुभव की आँच में तापकर। गौर किया जाए तो यह साफ दिखाई देता है कि उनका साहित्य किसी भी मान्यता का मोहताज नहीं हैं। वहाँ अनैतिक से दिखने वाले नैतिक चरित्र है। यहाँ खुशनुमा स्वप्न और दुःस्वप्न यों साथ-साथ चलते हैं जैसे नदी औऱ किनारा।
ये मंटों के आत्मोद्गार है जो उन्होंने ' सहादत हसन' में लिखे हैं। मंटों उर्दू के सबसे महत्वपूर्ण, चर्चित एवं विवादास्पद लेखक हैं। वे जब लिखते हैं तो कलम को मानों तलवार सी धार लग जाती है। लिखते समय वे वाक् चातुर्य व शब्दों की सजावट पर निगरानी नहीं रखते। वे जो लिखते हैं सत्य को अपने पास बैठाकर और अनुभव की आँच में तापकर। गौर किया जाए तो यह साफ दिखाई देता है कि उनका साहित्य किसी भी मान्यता का मोहताज नहीं हैं। वहाँ अनैतिक से दिखने वाले नैतिक चरित्र है। यहाँ खुशनुमा स्वप्न और दुःस्वप्न यों साथ-साथ चलते हैं जैसे नदी औऱ किनारा।
वे चाहे विभाजन पर लिख रहे हो या दलित समस्याओं पर या अन्य विसंगतियों पर , उतना ही डूब कर लिखते हैं जैसे कोई अपना ही भोगा हुआ लिख रहा हो । वे उन पर नज़र डालते हैं जिन पर समाज की नजरें वक्र हो जाती हैं। वे ब़ड़ी ही जिम्मेदारी से उन अनजाने पक्षों को उद्घाटित करते हैं ,जिन पर पहुुूुँचा हुआ मनोवैज्ञानिक भी नहीं पहुँच पाता। मंटो का पहला अफ़साना 'तमाशा' शीर्षक से 'ख़ल्क' में प्रकाशित हुआ। यह कहानी जलियाँवाला बाग हादसे से प्रेरित है। एक बच्चे खालिद की अबोध जिज्ञासा औऱ दमनकारी प्रवृत्तियों को यह कहानी बखूबी उज़ागर करती है। कहानी प्रक्रिया में वे इतिहास की घटनाओं को संवेदना,अभिव्यक्ति व सच्चाई के साथ लिखते हैं। यह बानगी और बयाँगिरी ही उनका अपना अनूठा ढब है, जो आज भी लोकप्रिय है। सन् 1919 की एक बात, शिकारी औरतें, दो कौंमें,ठंडा गोश्त, गुरूमुखसिंह की वयीयत और टोबा टेक सिंह उनकी बेहतरीन कहानियाँ है। इन कहानियों में वे एक चरित्र के माध्यम से अनेक चरित्रों की तहें खोलते हैं।
मंटों का लिखा बैचेन करता है, गहरे तक आंदोलित करता है, चेतना को तार-तार करके रख देता है। मुल्क और उसकी बैचेनी से जुड़ी उनकी कहानियाँ निज़ी नहीं है। वे लिखते हैं, "अदब दर्ज़ा हरारत है अपने मुल्क का,अपनी कौम का। वह उसकी सेहत औऱ बीमारी की खबर देता रहता है।" मंटो मुल्क की सेहत और बीमारी का पूरा खाका शब्दशः तैयार करते है। कुछ ने उन्हें सनकी कहा तो कुछ ने उन्हें काफ़िर पर वे तो बेफिक्री में जीने वाले थे ।
मंटों अपनी कब्र पर स्वयं अपनी इबारत लिखते हैं कि- "यहाँ सआदत हसन मंटो लेटा हुआ है और उसके साथ कहानी लेखन की कला और रहस्य भी दफ़न हो रहे हैं। टनों मिट्टी के नीचे दबा वह सोच रहा है कि क्या वह खुदा से बड़ा कहानी लेखक नहीं है। " मंटों की यह लिखी इबारत उनकी आत्ममुग्धता नहीं वरन् आत्मसम्मान है जो यह बयां करती हैं कि वे मानवता के लिए अपने लिखे से बदस्तूर कायम है।
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