हम अगर बीमार हैं तो बीमारी के इलाज खोजें जाहिर सी बात है कि घर में
तनाव है तो जिम्मेदार तो सिर्फ और सिर्फ घर के ही लोग हैं। ऐसे में हम माहौल
सुधारने की कोशिश करें तो श्रेष्ठ होगा। तथ्यों और तर्कों से किसी भी खबर की
सत्यता को जाँचे ना कि उस पर आँख मूँद कर विश्वास कर लें। सहिष्णुता और असहिष्णुता के शब्दजाल में आज हर
कोई फिसल गया है। सत्यता है कि सभी विरोधियों की मंजिल एक ही हैं बस उन्होंने राह
कुतर्क की चुन ली है। नेतृत्व मन की बात भले ही जगजाहिर करें परन्तु उसे
सम्वेदनशील मुद्दो पर मौन रहने की नीति से बचना होगा।कारण कि इस व्यथित मन के मौन
ने तो वैसे भी लम्बे समय तक परेशान किया है। अब संवाद को अपनाना होगा। खुल कर बात
करनी होगी। देश को भीतरी मसलों पर एकजुट होकर यह दिखाना होगा कि भारत अब भी सूरज
औऱ चाँद को एक ही हथेली पर लेकर चलने वाला देश है। यहाँ कि विविधता और विभिन्न
सम्प्रदाय ही यहाँ की विशेषता ही नहीं ताकत भी है। यहाँ धार्मिक सद्भाव है औऱ
भक्ति, ज्ञान और नीति की त्रिवेणी से हर मन सराबोर है। आज सबसे अधिक जिम्मेदारी
वैचारिक पक्ष और राजनीतिक कदमों की हैं। इन्हें अब देश के लिए एकजुट होना होगा।
देश को सही राह दिखानी होगी। जनता को विश्वास दिलाना होगा कि सब कुछ वैसा ही है
जैसा सदियों से चला आ रहा है। भीड़ को व्यक्तिगत सोच प्रदान करनी होगी नहीं तो
कहने को तो बगदादी भी भीड़ के मनोविज्ञान से खेल ही रहा है। यहाँ सिर्फ इतना बदलाव
होगा कि खेल आज कोई रहा है औऱ कल कोई और खेल रहा होगा। आज हर कोई अपने को सिकन्दर
समझ रहा है। जरा सा विरोध होते ही सीधे सीधे दूसरे को देशद्रोही होने का तमगा दिया
जा रहा है। इन स्थितियों पर अब गौर करने
की ज़रूरत है। देखा जाए तो सोशल मीडिया आज निर्णायक की भूमिका में नजर आने लगा है।
यहाँ जितनी अधिक अभद्र भाषा का प्रयोग और असहिष्णुता फैली है औऱ कहीं नहीं।
आज आवश्यकता है समरसता को स्थापित करने की, स्वयं के साथ – साथ औरों
के अस्तित्व को भी स्वीकारने की और अपनी बात को सलीके से और सतर्क कहने की कला को
विकसित करने की। हर देश और समाज में बहुत कुछ घटता है। कभी बाहर तो कभी भीतर, कोरे आदर्शवाद की कल्पना
करना महज़ दिवास्वप्न देखने जैसा है। यहाँ का हर नागरिक प्राथमिक है यही विश्वास
आज पक्ष और प्रतिपक्ष को आम जनता को देना होगा। भारत सदैव अपनी विलक्षण नीतियों से विश्व का
सिरमौर रहा है, वह आज भी है इसमें कोई दोराय नहीं। बस इस नवम्बर में कहीं कुछ
गड़बड़ी हो गई है। नवम्बर बीत रहा है और दिसम्बर दस्तक दे रहा है ऐसे में आशा ही
नहीं पूर्ण विश्वास है कि बाहर शीत होने के बावजूद भीतर बहुत कुछ पिघल जाएगा।
http://dailynewsnetwork.epapr.in/c/7374143
No comments:
Post a Comment