"किसी भी भाव की अत्यन्तता ,पराकाष्ठा अथवा चरम ही सरहद (सीमा) है."- Euclid
ठीक है यह बात पर कई मर्तबा यही अति विनाश के चौड़े रास्तों को भी बना देती है जिसका अंधानुकरण अनायास और सतत होने लग जाता है। ऐसा ही एक वाक़या देख रही हूँ और यह सब देखते हुए भी मना नहीं कर सकती। क्योंकि ऐसा करने वाले वहाँ संख्या में अधिक थे। बहुत लोग यह भी कह सकते हैं कि यह कृत्य बहुत से लोगों को रोज़गार भी तो देता है।सो वहाँ यूँ दमदार तरीक़े से नहीं कहा क्योंकि कम से कम सौ लोग तो वहाँ ये सब कर ही रहे थे...कुछ को टोका पर उन्होंने मुझे नेट पर तैरते कुछ संदेश दिखा दिए। फिर पूरी झील की सरहद का मुआयना किया तो यह संख्या चौंकाने वाली थी। वहाँ आटे से सजे थाल भी कुछ हाथों में थे । कुछ ने वहाँ मेरी बात को सुना और कइयों ने नहीं।मेरा उद्देश्य यूँ भी किसी को आहत करना नहीं था वरन् जो वाकई आहत हो रहीं थी उनकी रक्षा और झील को बचाना था।
आनासागर झील पर इन दिनों सौन्दर्यीकरण के सराहनीय प्रयास चल रहे हैं। प्रशासन की इसके चारों ओर पाथ वे बनाने की योजना है , शायद । सराहनीय है यह योजना कि लोग झील को और पानी की कल-कल को कुछ ओर समीप से देख सकेंगे। पर जब ये प्रयास किए जाते हैं तो नागरिकों की क्या भूमिका होनी चाहिए , इसकी रिक्तता वहाँ घूमते, वॉक करते लोगों में देख निराशा हुई।
आनासागर झील स्वच्छता के उन मापदंडों को पूरा नहीं करती और इसके पीछे अपने कारण हैं फिर भी इसका सौंदर्य जादुई है।यह अजमेर का दिल है जो इस शहर की ख़ूबसूरती में भी इज़ाफ़ा करता है। इस झील में खूब मछलियाँ हैं जिन्हें पकड़ने पर तो प्रशासन ने रोक लगा दी हैं पर यहाँ उन्हें ब्रेड, आटे की गोलियाँ और अन्य खाद्य पदार्थ डालने की लोगों में मानो होड़ सी लगी है और जिस पर कोई अंकुश नहीं है।
अंकुश तो स्व-अनुशासन का होना चाहिेए ना!
यह कहूँ कि जागरुकता के अभाव में लोग मछलियों को यह सब खाद्य वस्तुएँ चाव से खिला कर दान कर रहे हैं तो मुझे लोगों की समझ पर शक होता है। चौपाटी पर सुबह और शाम मछलियों को ये खाद्य वस्तुएँ खिलाते हुए लोगों को देखा जा सकता है। आटे की गोलियाँ,दाना, ब्रेड पीसेज, मुरमुरे, बिस्कुट, रोटी व सोयाबीन एवं कई अन्य खाद्य सामग्री झील में डाली जा रही हैं जो कि मछलियों के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। यही बात में कई अन्य जलाशयों व जल स्रोतों पर भी देखती हूँ।
इनके कारणों पर नज़र डालने की कोशिश की तो आस्था ही एक कारण नज़र आया..या कि संवेदनशील मन जिसे अज्ञानवश इस अहित कर्म का ज्ञान नहीं है।
यह समझना होगा कि मनुष्यों के लिए प्रयोग की जाने वाली खाद्य सामग्री मछलियों के लिए पोषक नहीं है, बल्कि यह उनकी मौत तक का कारण बन सकती है। आटे और मैदा से बनी वस्तुएँ जलीय जीवों , मछलियों का प्राकृतिक भोजन नहीं है। यह खाद्य सामग्री मछलियों के पेट में एकत्र हो जाती है और गलफड़ों में फँसकर उनकी जान तक ले सकती है। साथ ही इन खाद्य सामग्री के टुकड़ों से पानी भी दूषित होता है, वो अलग। खाद्य अवशिष्टांश से युक्तवह जल धीरे-धीरे सडऩे लगता है और इसके कारण पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। नतीजतन मछलियों की जान जोखिम में पड़ जातीहै। यहीं यह भी देखा कि लोग पॉलीथीन की थैलियां तक पानी या किनारों पर फेंक देते हैं जो भी जलीय जीवों के लिए , झील के लिए हानिकारक है।
झील पर बहुतेरे प्रवासी पक्षी आते हैं, उन पर भी श्रद्धा का यह सैलाब इसी तरह उमड़ता है।
मेरे जीव की ही तरह साँस लेने वाले मनुष्य नामधारी जीवों आपसे आग्रह है कि अतिशय श्रद्धा और संवेदनशीलता के सैलाब में हम करणीय , अकरणीय के बीच एक रेखा खींचने की समझ रख सकें तो यह प्रकृति और प्रकारान्तर से हम सभी के लिए बेहतर होगा।
अब समय नहीं है ।हमें हमारे व्यवहार से ही यह बताना होगा कि हम इस धरा के जागरूक मानुष पुंज हैं।
मेरा प्रशासन , प्रबुद्ध समुदाय, समाचार पत्रों ,नागरिकों से इस विषय पर सार्थक हस्तक्षेप करने का आग्रह है।
-विमलेश शर्मा
#झील_के_हक़_में
#save_the_nature
#Save_Anasagar
ठीक है यह बात पर कई मर्तबा यही अति विनाश के चौड़े रास्तों को भी बना देती है जिसका अंधानुकरण अनायास और सतत होने लग जाता है। ऐसा ही एक वाक़या देख रही हूँ और यह सब देखते हुए भी मना नहीं कर सकती। क्योंकि ऐसा करने वाले वहाँ संख्या में अधिक थे। बहुत लोग यह भी कह सकते हैं कि यह कृत्य बहुत से लोगों को रोज़गार भी तो देता है।सो वहाँ यूँ दमदार तरीक़े से नहीं कहा क्योंकि कम से कम सौ लोग तो वहाँ ये सब कर ही रहे थे...कुछ को टोका पर उन्होंने मुझे नेट पर तैरते कुछ संदेश दिखा दिए। फिर पूरी झील की सरहद का मुआयना किया तो यह संख्या चौंकाने वाली थी। वहाँ आटे से सजे थाल भी कुछ हाथों में थे । कुछ ने वहाँ मेरी बात को सुना और कइयों ने नहीं।मेरा उद्देश्य यूँ भी किसी को आहत करना नहीं था वरन् जो वाकई आहत हो रहीं थी उनकी रक्षा और झील को बचाना था।
आनासागर झील पर इन दिनों सौन्दर्यीकरण के सराहनीय प्रयास चल रहे हैं। प्रशासन की इसके चारों ओर पाथ वे बनाने की योजना है , शायद । सराहनीय है यह योजना कि लोग झील को और पानी की कल-कल को कुछ ओर समीप से देख सकेंगे। पर जब ये प्रयास किए जाते हैं तो नागरिकों की क्या भूमिका होनी चाहिए , इसकी रिक्तता वहाँ घूमते, वॉक करते लोगों में देख निराशा हुई।
आनासागर झील स्वच्छता के उन मापदंडों को पूरा नहीं करती और इसके पीछे अपने कारण हैं फिर भी इसका सौंदर्य जादुई है।यह अजमेर का दिल है जो इस शहर की ख़ूबसूरती में भी इज़ाफ़ा करता है। इस झील में खूब मछलियाँ हैं जिन्हें पकड़ने पर तो प्रशासन ने रोक लगा दी हैं पर यहाँ उन्हें ब्रेड, आटे की गोलियाँ और अन्य खाद्य पदार्थ डालने की लोगों में मानो होड़ सी लगी है और जिस पर कोई अंकुश नहीं है।
अंकुश तो स्व-अनुशासन का होना चाहिेए ना!
यह कहूँ कि जागरुकता के अभाव में लोग मछलियों को यह सब खाद्य वस्तुएँ चाव से खिला कर दान कर रहे हैं तो मुझे लोगों की समझ पर शक होता है। चौपाटी पर सुबह और शाम मछलियों को ये खाद्य वस्तुएँ खिलाते हुए लोगों को देखा जा सकता है। आटे की गोलियाँ,दाना, ब्रेड पीसेज, मुरमुरे, बिस्कुट, रोटी व सोयाबीन एवं कई अन्य खाद्य सामग्री झील में डाली जा रही हैं जो कि मछलियों के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। यही बात में कई अन्य जलाशयों व जल स्रोतों पर भी देखती हूँ।
इनके कारणों पर नज़र डालने की कोशिश की तो आस्था ही एक कारण नज़र आया..या कि संवेदनशील मन जिसे अज्ञानवश इस अहित कर्म का ज्ञान नहीं है।
यह समझना होगा कि मनुष्यों के लिए प्रयोग की जाने वाली खाद्य सामग्री मछलियों के लिए पोषक नहीं है, बल्कि यह उनकी मौत तक का कारण बन सकती है। आटे और मैदा से बनी वस्तुएँ जलीय जीवों , मछलियों का प्राकृतिक भोजन नहीं है। यह खाद्य सामग्री मछलियों के पेट में एकत्र हो जाती है और गलफड़ों में फँसकर उनकी जान तक ले सकती है। साथ ही इन खाद्य सामग्री के टुकड़ों से पानी भी दूषित होता है, वो अलग। खाद्य अवशिष्टांश से युक्तवह जल धीरे-धीरे सडऩे लगता है और इसके कारण पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। नतीजतन मछलियों की जान जोखिम में पड़ जातीहै। यहीं यह भी देखा कि लोग पॉलीथीन की थैलियां तक पानी या किनारों पर फेंक देते हैं जो भी जलीय जीवों के लिए , झील के लिए हानिकारक है।
झील पर बहुतेरे प्रवासी पक्षी आते हैं, उन पर भी श्रद्धा का यह सैलाब इसी तरह उमड़ता है।
मेरे जीव की ही तरह साँस लेने वाले मनुष्य नामधारी जीवों आपसे आग्रह है कि अतिशय श्रद्धा और संवेदनशीलता के सैलाब में हम करणीय , अकरणीय के बीच एक रेखा खींचने की समझ रख सकें तो यह प्रकृति और प्रकारान्तर से हम सभी के लिए बेहतर होगा।
अब समय नहीं है ।हमें हमारे व्यवहार से ही यह बताना होगा कि हम इस धरा के जागरूक मानुष पुंज हैं।
मेरा प्रशासन , प्रबुद्ध समुदाय, समाचार पत्रों ,नागरिकों से इस विषय पर सार्थक हस्तक्षेप करने का आग्रह है।
-विमलेश शर्मा
#झील_के_हक़_में
#save_the_nature
#Save_Anasagar
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