रात आस का भी रूपक है तो बिछोह का भी!
शीतलता का भी तो दाह का भी। इसीलिए इसे विरह की जाई कहा गया..विरह से उत्पन्न ..अभाव की आत्मजा...अभाव इसीलिए शीतल होने के बावजूद दाह..दाघ
घाम के ना होते हुए भी ताप!
मन पर याद की एक अमिट छाप होती है। वह कौंध होती है ..तीव्रतम अनुभूति। जहाँ मेधा नहीं मन जीत जाता है। अमिट इतनी कि साल बीत जाते हैं ...उम्र बीत जाती है पर साथ बना रहता है । क्षणांश का साथ भी जन्म भर साथ रहता है इसीलिए तो एकान्त भी निर्दोष बने रहते हैं। ठीक तभी कोई सीता अपने पावित्र्य में कुंदन बन जाती है और कोई राम कुंदन को ही सिया मान बैठता है।
याद का साथ महत्त्वपूर्ण होता है...साथ रहें तो इस तरह कि धड़कन।ये क्षण ही ऊर्जा देते हैं ..वे तब भी याद अलगनी पर टंगे रहते हैं जब बिछोह हो जाता है...जब प्रिय दूर होकर और पास आ जाता है ।
कोशिश करना कि छोटी से छोटी याद को भी किसी प्रिय शब्द की तरह सहेज सको अपनी प्रिय डायरी में ..इस सूत्र वाक्य के संदर्भ में कि प्रेम में क्षण महत्त्व रखते हैं उम्र नहीं । वे उसी तरह ज़िंदा रहते हैं जिस तरह डायरी में दर्ज इबारतें एक उम्र के बाद जीवित हो जाती हैं।यहाँ भाव महत्त्व रखते हैं , धन नहीं । यहाँ संज्ञाएँ भी बड़ी हो जाती हैं और पूरे-पूरे वाक्य अर्थहीन, इसलिए किसी को पुकारो तो कुँआरी संज्ञा से, वहाँ घालमेल , चातुरी और जोड़तोड़ नही चल पाता ...लाख बार ज़बरन शुरू कर ख़त्म कर देने पर भी नहीं !
प्रेम करो तो जन्मों में विश्वास रखना, प्रेम करो तो पाणिग्रहण संस्कार की तरह ऊष्मा सहेजना ताउम्र। प्रेम करना तो पढ़ना उसे किसी अनिवार्य विषय की तरह , विकल्पों के बीच पढ़ोगे तो वह रीत जाएगा, बीत जाएगा।
प्रेम में जीता मन बौराया होता है...ताउम्र प्रेम में पगा ।वह चाहता है कि बीती हुई बातों को दोहराया जाए, उन्हें फिर से जिया जाए। शायद इसीलिए कोई सोती हुई आँखों से जागकर रात के काजल को जलाता है और झूठ से भी अधिक स्याह रात को , चाँद की बिन्दी वाली रात की तरह मनाता है...!
#प्रेम_गली_अति_साँकरी
~विमलेश शर्मा
शीतलता का भी तो दाह का भी। इसीलिए इसे विरह की जाई कहा गया..विरह से उत्पन्न ..अभाव की आत्मजा...अभाव इसीलिए शीतल होने के बावजूद दाह..दाघ
घाम के ना होते हुए भी ताप!
मन पर याद की एक अमिट छाप होती है। वह कौंध होती है ..तीव्रतम अनुभूति। जहाँ मेधा नहीं मन जीत जाता है। अमिट इतनी कि साल बीत जाते हैं ...उम्र बीत जाती है पर साथ बना रहता है । क्षणांश का साथ भी जन्म भर साथ रहता है इसीलिए तो एकान्त भी निर्दोष बने रहते हैं। ठीक तभी कोई सीता अपने पावित्र्य में कुंदन बन जाती है और कोई राम कुंदन को ही सिया मान बैठता है।
याद का साथ महत्त्वपूर्ण होता है...साथ रहें तो इस तरह कि धड़कन।ये क्षण ही ऊर्जा देते हैं ..वे तब भी याद अलगनी पर टंगे रहते हैं जब बिछोह हो जाता है...जब प्रिय दूर होकर और पास आ जाता है ।
कोशिश करना कि छोटी से छोटी याद को भी किसी प्रिय शब्द की तरह सहेज सको अपनी प्रिय डायरी में ..इस सूत्र वाक्य के संदर्भ में कि प्रेम में क्षण महत्त्व रखते हैं उम्र नहीं । वे उसी तरह ज़िंदा रहते हैं जिस तरह डायरी में दर्ज इबारतें एक उम्र के बाद जीवित हो जाती हैं।यहाँ भाव महत्त्व रखते हैं , धन नहीं । यहाँ संज्ञाएँ भी बड़ी हो जाती हैं और पूरे-पूरे वाक्य अर्थहीन, इसलिए किसी को पुकारो तो कुँआरी संज्ञा से, वहाँ घालमेल , चातुरी और जोड़तोड़ नही चल पाता ...लाख बार ज़बरन शुरू कर ख़त्म कर देने पर भी नहीं !
प्रेम करो तो जन्मों में विश्वास रखना, प्रेम करो तो पाणिग्रहण संस्कार की तरह ऊष्मा सहेजना ताउम्र। प्रेम करना तो पढ़ना उसे किसी अनिवार्य विषय की तरह , विकल्पों के बीच पढ़ोगे तो वह रीत जाएगा, बीत जाएगा।
प्रेम में जीता मन बौराया होता है...ताउम्र प्रेम में पगा ।वह चाहता है कि बीती हुई बातों को दोहराया जाए, उन्हें फिर से जिया जाए। शायद इसीलिए कोई सोती हुई आँखों से जागकर रात के काजल को जलाता है और झूठ से भी अधिक स्याह रात को , चाँद की बिन्दी वाली रात की तरह मनाता है...!
#प्रेम_गली_अति_साँकरी
~विमलेश शर्मा
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