फोन कब बजा कुछ ध्यान ही नहीं रहा। ऑफिस में व्यस्तता के चलते सारी इन्द्रियाँ
मानो शिथिल हो जाती है। लंच के बाद देखा तो पड़ोस की कविता जी के नम्बर की मिस्ड
काल स्क्रीन पर शो हो रही थी। क्या बात हुई आज तो मिनी भी घर पर ही थी। मन घबरा
गया मैंने घर पर फोन लगाया तो कोई जवाब नहीं मिला। कविता जी को लगाया और माफी
मांगी की ,सॉरी व्यस्तता के चलते अटैंड नहीं कर पाई। सब ठीक तो है..प्रत्युत्तर
में जवाब आया ..सब ठीक है ..बस आपके पेट को स्ट्रीट डॉग काट गया है , आप व्यस्त
होंगें तो मैं इसे हॉस्पीटल ले आई ,इसीलिए आपसे बात करना चाह रही थी। मिनी भी मेरे
साथ ही है, आप चिंता नहीं कीजिएगा..मैंने औपचारिकता वश कहा, आप बहुत परेशान हुई
होंगी ,मैं ले जाती उसे..उन्होंने कहा सब ठीक है आप चिंता मत किजिए। ये पालतू भी
कितने निरीह होते हैं यही सोचते सोचते घर पहुँची तो चार टाँके लिए महाशय ब्रूनो
मासूम आँखों से ताक रहे थे। मेरा मन कविता जी के लिए कृतज्ञता से भर आया । मिनी को
यही समझाती रही कि आंटी ने कितनी मदद की ना हमें भी इस तरह सभी की मदद करनी चाहिए।
किसी भी प्राणी को तकलीफ से बाहर निकालना ही सच्चा मानव धर्म है। किचन में चाय
बनाने गई औऱ तभी सहसा डोरबेल बजी। मिनी ने दरवाजा खोला तो पास वाले भैय्या प्रिंटर के लिए पूछने आए थे। मैंने मिनी से कह
दिया कि कह दो कि खराब है बेटा...मिनी ने प्रश्निल निगाहों से मुझे देखते हुए मेरे
कहे अनुसार जवाब दे दिया। लौटकर बोली कि
मम्मा प्रिंटर तो ठीक है ,क्या हमें उनकी मदद नहीं करनी थी। मिनी मेरे सामने बैठे
जवाब का इंतजार कर रही थी और मैं उसकी निगाहों से बचने का प्रयास कर रही थी.....
No comments:
Post a Comment