Sunday, June 21, 2015

जीवन की थिरकन का नाम है संगीत..

                       जीवन की थिरकन का नाम है संगीत

संगीत जीवन को ऊर्जा देता है, उदास मन  को राहतों की  पुलक  से भर देता है इससे भी बढ़कर कई बार तो असंख्य असाध्य रोगों  की दवा भी बन जाता है।   प्रकृति के हर उपादान का अपना एक अनूठा संगीत है, जहाँ नदियाँ एक पुलक से निरंतर बहती रहती है, पक्षियों का कलरव और चहचहाहट एक सुखद वातावरण का निर्माण करता रहता हैं और कोयल की कूक हर मन के मौसम को बासंती कर देती है। यह संगीत और कलरव हर जगह है फिर चाहे वह मूर्त हो या अमूर्त । भीगे परिंदों के पंख पड़फड़ाने में भी एक संगीत है तो रेल की धड़ाधड़ी में भी वही संगीत है, पत्तों की सरसराहट हो या, हवा का निर्मल बहना या फिर मोतियों जैसी बरसती बूँदों का जलतरंग, सभी एक लय में संगीत की शास्त्रीय धुनों का आलाप रचते रहते हैं। संगीत रूदन में भी है तो संगीत हास में भी है बस ज़रूरत होती है उसे दो पल ठहरकर सुनने की, कुछ पल ही सही  बस जी लेने की । आज हम जिस समय में सांसे ले रहे हैं वह विसंगतियों से भरा है। यहाँ बेहिसाब विकास है, तकनीक का जंजाल है अगर कुछ नहीं है तो वह है खुद से खुद की मुलाकात। इस मुलाकात में संगीत बेहद सहायक सिद्ध हो सकता है। सामवेद संगीत का स्रोत ग्रंथ माना जाता है जिसमें प्रारम्भ में केवल तीन स्वरों का ही उल्लेख है । इसके पश्चात् तीन से सात सुरों तक का  सफर भी शोध और आनंद दोनो ही दृष्टियों से बहुत ही रोचक है। संगीत को केवल सात सुरों में ही नहीं बाँधा जा सकता है वरन् इसको मापने के लिए विश्व और ब्रह्माण्ड की समस्त सीमाएँ भी छोटी जान पड़ती है। संगीत वैविध्य की सीमाओँ में बँधे विश्व को एक सूत्र में बाँधने का काम करता है। संगीत के महत्व की अगर आज के परिप्रेक्ष्य में बात की जाए तो आज की जरूरत है संगीत। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार आज हर तीसरा व्यक्ति हाइपरटेंशन और अवसाद से ग्रस्त है । हाइपरटेंशन स्वंय अनेक बीमारियों को बुलाने का सामर्थ्य रखता है । अगर जीवन में कुछ पलों के लिए ही संगीत स्थान पा ले तो अनेक बीमारियों पर काबू पाया जा सकता है। यही कारण है कि सम्पूर्ण विश्व में संगीत एक थैरेपी बन कर उभर रहा है। कनाडा अवस्थित मैकगिल विश्वविद्यालय के स्नायु विज्ञान विशेषज्ञ एवं अपने समय के ख्यात रोक संगीतकार डैनियल लैविटीन का कहना है संगीत भावनात्मक जीवन में एक रूपक का काम करता है। भाषा के बरक्स संगीत भावनाओं का कहीं बेहतर प्रगटीकरण करता है। यही कारण है कि संगीत भावनात्मक उथल पुथल को व्यवस्थित करने में कारगर होता है। संगीत  को करीब से सुनने पर उसमें डूब जाने पर वह ध्यान सा आनन्द देता है और यही संगीत जब रूह को जगाने लगे तो वह समाधि अवस्था तक पहुँचा देता है जिसके समक्ष जीवन के सातों सुख छोटे जान पड़ते हैं। मन की हर ऊभचूभ को संगीत थिर करता है बशर्ते की हर एक मन अपने होश हो हवाश में , दिल के हर कोने से ,रोम रोम से उस संगीत को सुने। आधुनिक शोधों से यह भी स्पष्ट है कि संगीत की मदद से एकाग्रता और स्मृति को भी बढ़ाया जा सकता है। आज तकनीक के इस युग में संगीत में भी अनेक प्रयोग किए जा रहे हैं परन्तु साथ ही चिंता का एक विषय यह भी हो सकता है कि शास्त्रीय संगीत कुछ ही लोगों तक सिमट कर रह गया है,संगीत के पारपंरिक घराने आज समाप्त हो रहे हैं।
बहरहाल संगीत के क्षेत्र में अब भी बहुत कुछ अनसुना है, बहुत रागें हैं, बंदिशें है जिसे सुनते हुए आप कब आध्यात्मिक गलियारों की जानिबें चढंते जाएंगे पता ही नहीं चलेगा। संगीत की समझ को अगर कुछ विकसित कर लिया जाए तो समय की धारा के भीतर प्रवेश कर उस के गूढ रहस्यों का पता लगाने तक का हुनर है संगीत के पास । वह यूँ ही नहीं रचा गया है ,कई व्यक्तित्वों के गहन शोध और तपस्या की प्रतिफल है संगीत। वेदो की ऋचाओँ का नृत्य बेमानी नहीं है शायद यही कारण है कि पूरब और पश्चिम दोनों ही संस्कृतियों ने युगों युगों तक इस पर शोध किया है और प्रतिफल में पाया है कि प्रकृति को मोहपाश में बाँधने तक का हुनर है संगीत के पास। यह शोध साहित्य में भी नजर आता है जहाँ कहीं अज्ञेय की असाध्यवीणा की तान  है जिसमें संगीत की व्यष्टि से समष्टिपरक व्याख्या है तो कहीं फेदरिको के गिटार का रूदन । वस्तुतः किसी भी अभिव्यक्ति का चरम है संगीत , लय और ताल की उस जुगलबंदी का नाम है संगीत जो दिल के समस्त कोनों की थाह लेना जानता हो। चाहे आप उस्ताद सुल्तान खान की सारंगी सुने , या  उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई को या  फिर पश्चिम के कर्टकोबेन के  झकझोरने वाले संगीत को या फिर हमारे ही अमीर खुसरों के भाषायी संगीत से ताल्लुक रखें बात सिर्फ इतनी सी है कि उसे सुने ज़रूर। संगीत से एक जुड़ाव और आत्मीय समझ विकसित करें । आज जंरूरत है नई पौध में भी संगीत की समझ विकसित करने की क्योंकि संगीत जीवन का दूसरा नाम है।  यह अवसाद का इलाज है और चेतना को विकसित करने का नया आयाम है। प्रकृति और परिस्थतियाँ सदैव अनुकूल नहीं हो सकती । इसीलिए संगीत वह मुकाम है जहाँ पहुँचकर कभी भी मन की ऊसर जमीन को  बारिशों से भिगोकर पुनर्ववा किया जा सकता है।  अंततः संगीत और जीवन के इस अन्योन्याश्रित संबंध को सलाम और विश्व संगीत दिवस पर  सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ।


Tuesday, June 2, 2015

मानवता के आदि कवि- कबीर

                          मानवता के आदि कवि- कबीर
 
कबीरा खड़ा बाज़ार में, लिए लुकाठी हाथ.. कबीर के इसी बेलाग दर्शन की वजह से जो उनके आचरण और सहजता की परतों में छिपा था वे आज भी प्रासंगिक हैं। कागद, कलम को नहीं छूने वाले कबीर ने वाचिक परम्परा में अपने संदेश लोक के बीच रखे वो भी ठेठ देशज अंदाज में। साखी ,सबद ,रमैनी हो या फिर उलटबासियाँ ,वे अपने कहन में सभी कुछ समेटते हैं। प्रेम, अध्यात्म, अहंकार, बाह्याडम्बर, वर्णव्यवस्था सभी बिन्दुओं को बेबाक तरीके से प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करने वाले कबीर अकेले संत थे। आज जब अभिव्यक्तियाँ नाना दबावों को झेल रही है कबीर एक आदर्श की तरह सामने आते हैं।  अपनी बात सही तरीके से रखने के लिए भाषा  का अलंकृत होना ज़रूरी नहीं है वरन् सच्चाई की ज़रूरत है यही कारण है कि कबीर ने भाषा से वो सब कहलवाया जो वो कहलवाना चाहते थे.. बना तो सीधे सीधे नहीं तो दरेरा देकर। लोक को अनुभव करने के लिए वो सदा लोक के बीच रहे, जन समस्याओ से रूबरू होने के लिए उन्होंने देशाटन किया, इसी का नतीजा है कि उनका काव्य आँखन की देखी बन पाया। उनका काव्य जीवन और जगत के सत्य पक्ष को उजागर करने वाला काव्य है। वहाँ केवल भाव शबलता और अतिवायवी कल्पनाएँ नहीं है वरन् वह विवेक की ढृढ आधारशिला की छाँव में रचा गया है।  धर्म का विकृत रूप जो आज सामने रहा है उसके समानांतर  अगर हम कबीर के साहित्य का अनुशीलन करें तो पाते हैं कि कबीर का सम्पूर्ण जीवन धर्म के असत् और विकृत रूप का खंडन करने में बीता। उनका लक्ष्य विविधता में एकता और जटिलता में सरलता की स्थापना करना था।  साधना के क्षेत्र में कबीर व्यष्टिवादी हैं। वे एकेश्वरवादी हैं परन्तु उनका ईश्वर वैयक्तिक नहीं है वरन् वह सामूहिकता में आश्रय पाता है और वह संसार का रक्षक और नियंता है। किसी समय के शिष्ट और शिक्षित समाज पर कबीर का प्रभाव पड़ा हो या ना पड़ा हो इस पर विरोधी राय हो सकती हैं परन्तु यह तय है कि आज कबीर युवा वर्ग की अग्रगामी सोच के आदर्श हैं। कबीर अपने कहे से सार्थक संवाद करते हैं, काव्यत्व से युक्त साहित्य रचते हैं और अपनी वक्तृत्व कला के माध्यम से उसमें आकर्षण पैदा भी करते हैं । इस वक्तृत्व को वे प्रश्नों से नहीं बल्कि मौन से बुनते हैं यही कबीर के काव्य की विशेषता है।  कबीर के विचारों में सारे विमर्श स्थान पाते हैं।  वे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, वर्णों को नकारकर ऐसे समाज की स्थापना का प्रयास किया जिसमें  विभेदीकरण ना हो।  आश्चर्य यह है कि कबीर उस समय यह बात करते हैं जब समूचा समाज प्रतिगामी सोच में जी रहा था उस विपरितता में वे अपना घर जलाने का सामर्थ्य रखते हैं।  पीड़ित, शोषित, दमित जनता के जितने प्रभावी सरोकार कबीर के साहित्य में मिलते है उतने अन्य कहीं नहीं मिल सकते।  कबीर का गैर समझौतावादी व्यक्तित्व, क्रांतिकारी विचारधारा सम्पूर्ण साहित्य में अलग से चमकती है और यही प्रखरता और ओज आज की युवा पीढ़ी को आकर्षित करते हैं। कबीर मानवता के आदिकवि हैं  और अपनी विशिष्ट सार्वजनीनता के  कारण ही  वे आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं।




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