Wednesday, March 20, 2013


ख्वाबों को भेजा है निमंत्रण ,कुछ पल आकर बहला दें,

सूर्य किरण आने से पहले ,सौम्य चन्द्र राशि बिखरा दें ..





कोई तो बात है ऐसी जो जुबां पर आना चाहती है,
क्या है वो शायद यही फिजा भी जानना चाहती है...
दुआ कि शक्ल दूँ या कोई अरमान इसे बना दूँ,
बयान कैसे करूँ यही जानना चाहता है अब ये मन..






जीवन की परिभाषा क्या है,
कुछ पल साझा फिर जाना है..
हंसकर गुजरे वो अच्छा है,
यूहीं जीकर वरना क्या पाना है...

Tuesday, March 19, 2013

 साहित्य की थाती राजस्थानी भाषा 
म्हारो मरुधर देश अर्थात राजस्थान शताब्दियों से अपनी विशिष्ट पहचान बनाये हुए है .अरावली  पर्वतमाला और विषम स्थलाकृति ने इस प्रदेश की 5000 वर्ष  पुरानी सभ्यता और संस्कृति को एक धरोहर की भांति संभाल कर रखा है .यहाँ  के लोग ,लोक भाषा ,संस्कृति, लोक नृत्य ,लोक चित्रकला सभी में सजीवता ,माधुर्यता  एवं अपनेपन के दर्शन होते है .राजस्थानी भाषा जिसके लिए कहा गया है कि यह हर चार कोस पर बदल जाती है परन्तु इस वैविध्य में भी एक अनूठे ऐक्य के दर्शन इस भाषा में होते हैं।धोरो की इस पावन धरती की भाषा राजस्थानी ने केंद्र सरकार को भी इसे विशिष्ट दर्जा प्रदान करने को बाध्य केर दिया है .यहाँ कन्हैयालाल जी  सेठिया ,केसरी सिंह जी  बारहठ ,सूर्यमल्ल जी  मिश्रण ,विजयदान जी  देथा, श्री नन्द भारद्वाज तथा श्री चन्द्र प्रकाश देवल जैसे अतिविशिष्ट  साहित्यकार हुए है जिन्होंने अपनी रचनाओं से राजस्थानी भाषा को सम्रद्ध किया है .यह धरती वीरोचित भावनाओं से सम्रद्ध धरती है ,यह धरती है ढोल मारू के माधुर्य पूर्ण प्रेम की धरती इसीलिए यहाँ का जनमात्र कण कण सूं गूंजे जय जय राजस्थान का स्वर उच्चारित करता है l लहरिया की ही भांति राजस्थानी भाषा विविध गुणों एवं रंगों को अपने विस्तृत कलेवर में समेटे हुए है l यहाँ की भाषा का आकर्षण ही है कि केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश आज राष्ट्रीय ही नहीं वरन अंतर्राष्ट्रीय फलक पर छाया हुआ है .यहाँ की भाषा में वो शक्ति है जो मृत्यु को भी एक उत्सव की तरह मानने को बाध्य करती है .यहाँ माताएँ  बचपन से ही अपनी संतानों को "ईला न देणी आपणी हालरिया हुलरायै " जैसे गीत लोरी की तरह सुनाती हे ,तथा राष्ट्र को श्रेस्ठ पुत्र रत्न प्रदान करती है, निः संदेह यह यहाँ की भाषा की महानता का ही प्रमाण है।भारतीय  संस्कृति की  अनेक सात्विक विशेषताओं को राजस्थानी  भाषा अपनी कुक्षि में संजोये हुए है .वर्तमान में ज़रूरत है इस मायड़ भाषा के सुचारू प्रचार की जिससे पर्यटन के नवीन अवसर राजस्थान को प्राप्त हो।राजस्थान अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण पर्यटन के सर्वोतम अवसर भारत को प्रदान करता है परन्तु इसमें अभी भी अपार सम्भावनाए  छिपी  हुई है जिन्हें खोजने में राजस्थानी  भाषा एक महत्वपूर्ण माध्यम साबित हो सकती है .

Sunday, March 17, 2013

गुलमोहर के फूल.....


गुलमोहर के फूल.....


सांझी आशाएँ और विश्वास लिए,


बसंत आगमन का संकेत लिए,


आने को आतुर हैं,आँचल में,


ये कोमल गुलमोहर के फूल .......


.....पर ..कैसे इनका स्वागत करूँ?


जीवन सफ़र में कड़ी धूप है ,


पर होंसला बढ़ाने की आस हैं,


ये कोमल गुलमोहर के फूल,


पर प्रश्न फिर भी यक्ष हैं,


कि... कैसे !!इनका स्वागत करूँ?


लौट आयें हैं सगुन पंछी,


कौंपलें भी हैं फूटने को आतुर ,


मिल रहें हैं अब संकेत कई,


पल पल है एहसास नए,


...पर ..कैसे !!इनका स्वागत करूँ?


नवीन अनुभव लिए है हर दिन,


जीवन तिक्तता भी है कुम्लाही सी,


अब इस स्नेहिल छावं तले,


पर प्रश्न फिर भी अहं है,


कि, कैसे !!मैं इनका स्वागत करूँ???


जीवन संध्या है निकट खड़ी,


अनुभवों को संजोये कई,


विमल एहसास है मगर यही,


ये कोमल गुलमोहर के फूल,


पर प्रश्न फिर भी है आज वही,


कि ,कैसे!! मैं इनका स्वागत करूँ ??