हाँ ! में भीड़ हूँ..
और समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी हूँ.बड़े बड़े जनांदोलन और क्रांतियाँ मेरी ही देन हैं. में वो नहीं जो सिर्फ अनुसरण करना जानती है ...
माना में आम हूँ , पर उतनी आम भी नहीं की मेरी भावनाओं का मखौल उड़ाया जाय . हाँ , में आज अन्ना की समर्थक हूँ क्यूंकि यह
धोखा खाया हुआ, ठगा हुआ व्यथित मन यह दाव भी बस खेल लेना चाहता है. मेरा एक बड़ा हिस्सा मध्य वर्गीय और निम्न मध्य
वर्गीय है और समाज का अहम् बुद्धिजीवी वर्ग भी मेरा ही एक भाग है ,जो सभी आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका निभाता है. उच्च वर्ग को मैं
अपना हिस्सा नहीं मानती क्यूंकि वो सिर्फ दिखावे और प्रचार के लिए ही मेरा साथ देता है.वर्तमान मैं राजनीति से मेरा मोह भंग हो चूका
है या यूँ कहें कि निकट भविष्य में कोई आशा कि किरण नहीं दिखाई पड़ रही है उधर से शायद यही वजह है कि जब ७४ वर्षीय अन्ना अनशन
करते हैं तोह मेरा मन द्रवित हो उठता है . यह इसलिए क्यूकि में संवेदना शून्य नहीं हूँ. में लोकपाल जैसे विषय को भी शायाद ठीक ठीक नहीं
समझ पाती क्यूकि अधिकाँश हिस्सा तो आम ही है ना ..पर अन्ना के साथ चलने को बाध्य हो उठती हूँ,इसका एक कारण यह भी है कि वहां एकत्व
और देशप्रेम फिर से साँसे लेने लगता है.में किसी किरण बेदी और केजरीवाल को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती पर उन्हें हिम्मत जुटाकर और मेरी
आवाज बनते देख मुझे मेरी ताकत का आभास होता है.गांधी जैसा व्यक्तित्व ना कोई हुआ है ना होगा पर फिर चैतन्य होने के कारण आशान्वित हो
उठती हूँ और मेरे मानस और मस्तिषक पटल से गाँधी और अन्ना का भेद मिट जाता है.यहाँ भी में अपनी प्रश्निल स्थिति से व्यथित हूँ .इसीलिए अनुरोध
है मेरा समाज के अन्नाओ से कि जनाक्रोश को क्रांति में जरूर बदला जाए और तब तक जब तक उसका कोई सार्थक परिणाम ना निकले. यूँ मझधार कि स्थिति
ठीक नहीं..अन्यथा आक्रोश का सैलाब जल्दी ही टूट जायेगा और मुझे फिर से एकजुट होने में बहुत वक़्त लग जायेगा...