Thursday, May 7, 2009
माँ...
अस्तित्व मेरा है पूर्ण तुझसे ,
तुने मुझे सृष्टी बनाया.
तेरी छुअन तेरी ममता ने ,
मुझे कड़ी धूप से बचाया.
माँ......
तेरी आँचल की छायाँ मैं ,
मैंने यह जीवन है पाया.
कोटि- कोटि नमन तेरे इस रूप को,
मैंने तुझमे ईश्वर है पाया .
माँ ....
क्यों है विकल तेरा मन ,
मेरी जरा सी यह उदासी देखकर .
तेरा प्यार और एहसास ही तो है ,
मेरे इस जीवन का संबल.
जीवन की इस कठिन डगर पर,
चलती हूँ हँसते-हँसते .
बस सहम जाती हूँ,
यह सोचकर की....
न आए कभी माँ ..... वो दिन ,
जिस दिन तेरा हाथ न हो मेरे सर पर...
Friday, March 27, 2009
मुलाकात.......
आज हमने किसी से मुलाकात की,
वह मुलाकात थी... पर थी एक दुखान्तिका।
जिंदगी के कई राज़ मालूम हुए हमें उससे,
आँखे नम हुई जो सुनी उसकी कहानी उससे।
वह एक नारी थी जो जीवन से हारी थी ,
नारीत्व ... था उसके लिए अभिशाप ....
रोज़ जलती थी वह चिंता की चिता मैं,
कड़वाहट मैं वह जो जी रही थी।
वह कोसती थी उसके नारी जीवन को......
बड़ा रोचक जीवन था उसका,
चूल्हा, चौका व चारदीवारी थी,जिसकी वह अधिकारिणी थी ।
बचपन लुटा था बरसों पहलें अब तो यादें भी धूमिल हो गई थी.....
प्यार .......
प्यार शब्द क्यों बनाया तुने....
हंस दी वो मेरे हालात पर ,
जो बात थी वह जानकर ।
बोली फिर वोह तपाक से ,
जो प्यार जिंदगी मैं हुआ न होता ......
पत्थर दिल किसी का रोया न होता ,खुशी की बहार आई न होती...
रस की कली वो खिली न होती, ख्वाब किसी का टूटा न होता....
जो प्यार जिंदगी मैं हुआ न होता.......
मैं खड़ी थी मूक सी यह सुनकर,
जीवन का सारा यथार्थ जानकर ,
कोई ख्वाब कभी न बुना हो जैसे,
कोरे कागज सा कोई मन हो जैसे।
दोस्ती
जिसकी मुस्कान होठो पर खिली रहती है।
दोस्ती वो जर्रा है,
जिससे दिल जुड़े रहते हैं ।
दोस्ती ...वो जस्बा है ....
जो हर किसी को नही मिलता।
दोस्ती वो गीत है,
जिसे गुनगुनाना सभी चाहते हैं।
दोस्ती...जिंदगी की बहार है,
खुदा का दिया ,अनमोल उपहार है...जिसे पाना हर कोई चाहता है।
दोस्ती...वह बंदगी है ....
जिसे पूजना हर कोई चाहता है।
खुबसूरत फूलों का हार है दोस्ती ,
सच का व्यवहार है दोस्ती...दो दिलो को गहराई से समझने का सार है दोस्ती।
दोस्ती.....वो खुबसूरत दिल है जो हर किसी के पास नही होता ।
वह भूल है दोस्ती....
जिसे जान कर भी हर कोई दोहराना चाहता है ।
जो कभी टूटती नही.... वह आस है दोस्ती ,
हाँ दोस्तों ! विश्वास है दोस्ती.........
Monday, March 9, 2009
यह रंग.....
बासन्ती हवा मैं डूबे गुलाबों सा,
मस्ती मैं घुले अनबीते क्षणों सा,
पहली बारिश मैं भीगी किसलय सा,
प्रकृति की क्रोड़ मैं पली कोमल रचना सा,
यह रंग तुम्हे मुबारक हो.......
नवीन क्रांतिकारी विचारों का,
जीवन के अविरल प्रवाहों का,
उपलब्धियों और उत्साहों का,
सामर्थ्य और आकाँक्षाओं का,
यह रंग तुम्हे मुबारक हो........
रिश्तों मैं घुली केसर सा,
कोमल हाथों की छुंअन सा ,
अनकहे शब्दों की अनुभूति सा,
नित नए रोमांच और अनुभव का,
यह रंग तुम्हें मुबारक हो..........
विमलेश शर्मा.........
एहसास ...........
चाहत अपनी जताऊं कैसे।
जिंदगी ने कुछ यों मोड़ लिया
राह पर इसको लाऊं कैसे ।
यादों के घनेरे जंगल हैं,
आशियाँ सपनों का बनाऊं कैसे।
उम्मीदों के पंख लगाकर ,
हसरतों के पंछी उडाऊं कैसे।
रातों की जागती तन्हाइयों में,
ख़ुद को ख़ुद से बहलाऊं कैसे।
प्यार का एहसास रुला देता है ,
ख़ुशी इन अश्कों की दबाऊं कैसे।
ज़िन्दगी करीब नज़र आती है,
तुमको भी करीब लाऊं कैसे..........
विमलेश शर्मा .......
इम्तहान.....
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं ,
अभी जिंदगी के इन्तहां और भी है।
आशाओं के साथ निराशाएँ भी हैं,
मगर साथ-साथ तमन्नाएँ भी हैं।
खुशियों की जहाँ मैं कमी तो नहीं ,
मगर साथ गम का भी कम तो नहीं।
माना ....दुखों को झेलना आसां तो नहीं,
मगर होंसलों की यहाँ कमी तो नहीं।
आंसुओं का समंदर अगर संग हैं,
साथ सपनो की दुनियाँ के भी रंग हैं।
मेरे ख्वाबों का सेतु बड़ा तो नहीं,
मगर मंजिलों की कमीं तो नहीं।
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं .........
अभी ज़िन्दगी के इम्तहां और भी हैं.............